मधुर गमों से घिर कर भी आप का ख्याल आता रहा
था तुम जैसा कोई और, मांग अपनी मनाता रहा
काली घुंघराली रेशमी जुल्फो में उलझता हुआ।
जुल्फों में छिपे फूल को उंगलियों में सहलाता रहा।
मोन थी वह शायद डूबी थी किन्ही ख्यालों मे
बेखबर बदन उसका ख्याल बन कर मैं आता रहा
मन कहे की नोच डालू इस धधकते बदन को
तसवीर समझ कर मैं उसी पे तरस खाता रहा
कुछ कहा कुछ सुना उसके उलझे हुए दिल से
खयाल अलग थे मैं दिल से उन्हें मिलाता रहा
कब तक करू तन्हाइयों में इन्तजार तेरा।
एक - इक लम्हा बरस बन के आता रहा ।